सियाचिन में होने वाले हर हादसे के बाद उस पर स्थाई समझौता निकालने की बात कही जाती है. हालांकि इस क्षेत्र से पूरी तरह सैनिकों को हटाने की बात कभी नहीं की जाती.
साल 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को सियाचिन पर समझौते को मंज़ूरी देने के लिए बहकाया गया था. लेकिन उन्हें यह समझने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगा कि उनको फंसाने के लिए जाल बिछाया गया था.
साल 1990 की शुरूआत में भी भारत ने सियाचिन मुद्दा सुलझाने के लिए पाकिस्तान के सामने एक प्रस्ताव रखा था. लेकिन पाकिस्तान की तरफ़ से कोई सकारात्मक जवाब नहीं आया.
साल 1997 में मंज़ूर किए गए मुद्दों में संयुक्त वार्ता में सियाचिन पर बातचीत भी शामिल था. दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी तरफ़ से प्रस्ताव रखे, लेकिन मामला अनसुलझा ही रहा.
सही मायनों में अब तक का एकमात्र सकारात्मक क़दम 2003 में उठाया गया जब दोनों पक्ष सियाचिन में युद्धविराम पर राज़ी हुए.
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एलओसी के बाक़ी हिस्सों से अलग, सियाचिन में युद्धविराम को दोनों पक्ष ईमानदारी से निभाते हैं.
यही वजह है कि एक दशक से सियाचिन में किसी सैनिक के लड़ते हुए मरने की ख़बर नहीं आई है, केवल ख़राब मौसम के कारण हुई मौतों की ख़बरें आई हैं.
अगर देखा जाए तो हाल के सालों में मौसम के कारण मौतों की संख्या में भी भारी गिरावट आई है.
साल 1984 में 'ऑपरेशन मेघदूत' शुरू होने के बाद कुछ सालों तक जितनी मौतें हुईं, अब उसका एक हिस्सा ही होता है.
ऐसे में भारत की तरफ़ से ना तो कोई जल्दबाज़ी है और ना ही कोई कारण कि वो अपनी शर्तों की जगह पाकिस्तान की शर्तों पर किसी समझौते के लिए राज़ी हो.
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सियाचिन से सेना हटाने के पक्षधर इन बिंदुओं पर अपना तर्क पेश करते हैं.
1.संघर्ष का ख़र्च.
देश की सीमाओं की रक्षा में होने वाले ख़र्च को पैसों के तराज़ू में तौल कर नहीं देखना चाहिए. अगर आज हम इस तर्क को मान लेते हैं कि सियाचिन की रक्षा में होने वाला ख़र्च उठाने में हम समर्थ नहीं हैं (जो कि ग़लत है), तो कल यह दलील दी जाएगी कि जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्व से जितनी आमदनी होती है उससे कहीं ज़्यादा इन राज्यों पर ख़र्च होता है.
इन राज्यों को भारत का हिस्सा बनाए रखना देश के लिए बेहद महंगा साबित हो रहा है. इसलिए इन्हें भारत से अलग कर देना चाहिए. साफ़ है कि ये एक बेतुका तर्क है.
2.सियाचिन संघर्ष पर्यावरण पर प्रभाव डाल रहा है.
इस तर्क को साबित करने के लिए कोई ठोस वैज्ञानिक सबूत उपलब्ध नहीं है.
हिमनद के सिकुड़ने की एक मात्र वजह वहां इन्सान की मौजूदगी नहीं है, यह एक भूमंडलीय घटना है. बड़ी बात यह है कि भारतीय सेना ने इस क्षेत्र के कमज़ोर पर्यावरण को बचाने के लिए आगे बढ़कर काम किया है.
3.कुछ लोगों का मानना है कि इस क्षेत्र का कोई सामरिक महत्व नहीं है क्योंकि इस क्षेत्र में घात लगा कर बड़ा हमला करना मुमकिन ही नहीं है.
अगर सियाचिन का कूटनीतिक महत्व नहीं होता तो 1980 के दशक में पाकिस्तान क्यों इस क्षेत्र पर क़ब्ज़ा करना चाहता था?
क्यों पाकिस्तान यह नहीं कहता है कि भारत एक बंजर ज़मीन पर क़ब्ज़ा बनाए रखने के लिए पैसे और सैनिक गंवा रहा है तो हमें उसे ऐसे करने देते रहना चाहिए?
पाकिस्तान ऐसा नहीं कहता क्योंकि वह सियाचिन का महत्व जानता है.
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हम शायद ऐसा मान सकते हैं कि सियाचिन सामरिक दृष्टि से बंजर ज़मीन है. लेकिन कल तकनीक या वातावरण में आए बदलावों से इस क्षेत्र में भारी संख्या में सेना भेज कर घुसपैठ करना मुमकिन हो सकता है.
4.एक और तथाकथित तर्क दिया जाता है कि 1989 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक समझौते हुआ था उन्हें दोबारा उसे मानना चाहिए.
यह अधूरा सच ही है.
सच तो यह है कि 1989 में सियाचिन मुद्दे को सुलझाने के लिए बातचीत हुई थी और दोनों देश एक संभावित समझौते पर सहमत भी हुए थे, पर कोई लिखित समझौता नहीं हुआ था.
जब तक कोई समझौता काग़ज़ी न हो, उसका कोई मतलब नहीं होता है.
तब से लेकर अब तक बहुत कुछ बदला है. साल 1989 में भारत जिन शर्तों के आधार पर समझौते को तैयार हो सकता था, वे अब भारत को नामंज़ूर हैं. भारत आज जो शर्तें रखना चाहता है, उसे कल भी पेश करे, यह ज़रूरी नहीं है.
दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास की कमी के कारण सियाचिन पर अब तक कोई ठोस समझौता नहीं हो सका है.
करगिल युद्ध के बाद तो इस विश्वास में और कमी आई है. एलओसी की विस्तृत रूपरेखा होने के बावजूद पाकिस्तान इसे बदलने की एक तरफ़ा कोशिश कर चुका है.
भारत की सबसे बड़ी चिंता है कि आज भले ही सियाचिन में पाकिस्तान की मौजूदगी ना हो, लेकिन जैसे ही भारत अपने सैनिक वहां से हटाएगा, पाकिस्तान अपने सैनिक भेज इस जगह पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश कर सकता है.
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इससे करगिल जैसी स्थिति पैदा हो जाएगी और इस स्थिति को बदलना नामुमकिन हो जाएगा.
भारतीय सैनिकों को सालतोरो चोटी तक पहुंचने में जहां 15 दिन लगते हैं, पाकिस्तान से यह चोटी महज़ 5 दिनों की दूरी पर है.
इन परिस्थितियों में सियाचिन से सेना हटाना तब तक बेवक़ूफ़ी होगी जब तक पाकिस्तान बिल्कुल ठोस आश्वासन ना दे और वह अभी ऐसा नहीं करना चाहता है.
इस मुसीबत को बढ़ाता है चीन. सियाचिन, चीन और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के बीच है.
ये दोनों देश सियाचिन पर अपना क़ब्ज़ा करना चाहते हैं जिससे उनको आगे बढ़ने में आसानी हो और इससे पाकिस्तान को काराकोरम दर्रे में सीधे घुसने का मौक़ा मिल जाए.
यह पहलू अपने आप इस तर्क को झुठलाता है कि सियाचिन का कोई सामरिक महत्व नहीं है.
इस मामले में भारत ने जो पेशकश की है उसके तहत सियाचिन से सैनिक हटाए जा सकते हैं.
पर पाकिस्तान भारत की उस शर्त को मानने को तैयार नहीं है कि एजीपीएल(एक्चुअल ग्राउंड पोज़ीशन लाइन) के सत्यापन को उस संभावित समझौते में शामिल कर लिया जाए.
यदि इसे समझौते के अनेक्सर में भी शामिल किया जाता है तो कम से कम इसे क़ानूनी वैधता तो मिल जाएगी.
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पाकिस्तान इसे किसी तरह मान भी ले तो वह भारत की इस चिंता को दूर नहीं कर सकता कि वह भविष्य में अपने वादे से पीछे नहीं हटेगा.
सच्चाई है कि भारत सियाचिन पर अपनी पकड़ बनाए रखेगा.
TPS for Venezuela is terminated, only 60 days extension for transition period
TPS to F1 Status.
TPS To F-1 COS
Venezuela TPS lawuit
tesla stock OMG !!
Those who are in TPS, what’s your backup plan?
TPS Sakiyo Tara Case is in Court.
Got my F1 reinstatement approved within 3 months(was out of F1 for almost 2 years)
Homeland Security revokes temporary status for 532,000 Cubans, Haitians, Nicaraguans and Venezuelans
Has anyone here successfully reinstated to F-1 status after a year-long gap following a drop from F-1?
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Supreme Court allows Trump to end TPS for Venezuelans
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